एयरफोर्स सैनिक का जोरदार लेटर बम ... !! ... पढें
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____ "कल जेल से छूटने के बाद छात्र संघ के कन्हैया के भाषण को सुन कर मुझे कुत्तों की प्रवृति याद आ गयी.. भौंकते हैं … जब कोई ठोकता है तो कुंकाते हैं यानि कैं कैं करते हैं और फिर कुछ दूरी पर जाकर भौंकने लगते हैं.. जिस न्याय व्यवस्था को मानते नही उसी से न्याय मांगने लगते हैं । याद किजिये भाषण के अगले दिन ये महाशय चैनल पर पूरे जोश के साथ नज़र आये—- जब गिरफ़्तारी हुई तो इनके तेवर ढीले पड़ गये– और जब अदालत में ठुकाई हुई तो ये दीन हीन हो गये । वैसे जेल में रहने का कुछ तो प्रभाव हुआ ही जो इनकी ग्रामर थोड़ी ठीक हो गयी पहले इन्हे “भारत से आज़ादी” चाहिये थी लेक़िन जेल से छूटने के बाद “भारत में” आज़ादी चाहिये हो गयी । इसका श्रेय में पूरा पूरा सरकार को देना चाहुंगा ।
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मैं इन महोदय को 'कुत्ता' कह कर संबोधित करना चाहता था लेक़िन मुझे कुत्तों की 'वफ़ादारी और इज़्ज़त' का ख़्याल आ गया । कुत्ते जिसका खाते हैं उस पर गुर्राते नही हैं । ये महोदय अमीरों के 'टैक्स के टुकड़ों' पर पलते हैं, शिक्षा अर्जित करते हैं और 'आरक्षण की भीख' से पद हासिल करते हैं और उन्ही पर गुर्राते भी हैं इनको “पूंजी वाद से आज़ादी भी चाहिये” । शर्म या नैतिकता नाम की कोई चीज़ बची हो तो ये इस बात पर गौर करें और अपने दम या बलबूते पर कुछ कर दिखायें तब बात करें । पर शर्म शायद ही बची हो क्योंकि ये जिनकी विचार धारा पर चलते हैं वो वही लोग हैं जो जिस थाली में खाते हैं उसी में थूक़ते भी हैं और छेद भी करते हैं ।
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उनके कुछ छात्र समर्थक और नेता समर्थक जो उनको तालियां बजाकर, उनके बयानों पर प्रसन्नता ज़ाहिर करके या शाबासी देकर उनका हौसला बढाते हैं उनको मैं एक उक्ति याद दिलाना चाहुंगा -'वैश्याओं के हाव भाव, अदाओं व कृत्यों पर या तो उनके दलाल ख़ुश होते हैं अथवा वो लोग जिन्हे उन से शारिरिक सुख प्राप्त करना होता है अथवा मनोरंजन ही जिनका मात्र ध्येय होता है । नैतिकता उसका कोई समर्थन नही करती ।'
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मैं पूर्व वायु सैनिक 'कृष्ण भारद्वाज' कड़े शब्दों में इन महाशय की निंदा करता हूं और इनको बताना चाहता हूं कि हम लोग आरक्षित कोटे में देश सेवा नही करने जाते हैं और ना ही तुम्हारी तरह नेताओं की पीक चाट कर मुँह लाल करने वालों में से हैं । भारत माता के लिये बे-हिचक जान की बाज़ी लगाने वाले हैं हम लोग । और एक चेतावनी देता हूं कि वो राजनिती करे, या राजनैताओं को गाली दे हमे इस बात से कोई मतलब नही है पर हिंदोस्तान, सैनिकों या पूर्व सैनिकों के बारे में अगर अनाश शनाप बातें या बयान बाज़ी की तो ये उसके भविष्य के लिये ठीक नही होगा । वक़ीलों को बहस करने में महारथ होती है, ठुकाई करने में नही, लेक़िन हम सैनिक 'बहस' भी कर सकते हैं और 'ठुकाई' करने में तो महारथ है ही और जब हम 'ठुकाई' करने पर आ गये तो ये तुम्हारे छात्र समर्थक और नेता समर्थक कहीं ढूंढने से भी नज़र नही आयेंगे । अपने क़द और वज़्न के अनुसार ही बातें करें वरना आपके लिये ठीक नही होगा । जय हिंद जय भारत ।
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-कृष्ण भारद्वाज पूर्व वायुसैनिक
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____ "कल जेल से छूटने के बाद छात्र संघ के कन्हैया के भाषण को सुन कर मुझे कुत्तों की प्रवृति याद आ गयी.. भौंकते हैं … जब कोई ठोकता है तो कुंकाते हैं यानि कैं कैं करते हैं और फिर कुछ दूरी पर जाकर भौंकने लगते हैं.. जिस न्याय व्यवस्था को मानते नही उसी से न्याय मांगने लगते हैं । याद किजिये भाषण के अगले दिन ये महाशय चैनल पर पूरे जोश के साथ नज़र आये—- जब गिरफ़्तारी हुई तो इनके तेवर ढीले पड़ गये– और जब अदालत में ठुकाई हुई तो ये दीन हीन हो गये । वैसे जेल में रहने का कुछ तो प्रभाव हुआ ही जो इनकी ग्रामर थोड़ी ठीक हो गयी पहले इन्हे “भारत से आज़ादी” चाहिये थी लेक़िन जेल से छूटने के बाद “भारत में” आज़ादी चाहिये हो गयी । इसका श्रेय में पूरा पूरा सरकार को देना चाहुंगा ।
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मैं इन महोदय को 'कुत्ता' कह कर संबोधित करना चाहता था लेक़िन मुझे कुत्तों की 'वफ़ादारी और इज़्ज़त' का ख़्याल आ गया । कुत्ते जिसका खाते हैं उस पर गुर्राते नही हैं । ये महोदय अमीरों के 'टैक्स के टुकड़ों' पर पलते हैं, शिक्षा अर्जित करते हैं और 'आरक्षण की भीख' से पद हासिल करते हैं और उन्ही पर गुर्राते भी हैं इनको “पूंजी वाद से आज़ादी भी चाहिये” । शर्म या नैतिकता नाम की कोई चीज़ बची हो तो ये इस बात पर गौर करें और अपने दम या बलबूते पर कुछ कर दिखायें तब बात करें । पर शर्म शायद ही बची हो क्योंकि ये जिनकी विचार धारा पर चलते हैं वो वही लोग हैं जो जिस थाली में खाते हैं उसी में थूक़ते भी हैं और छेद भी करते हैं ।
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उनके कुछ छात्र समर्थक और नेता समर्थक जो उनको तालियां बजाकर, उनके बयानों पर प्रसन्नता ज़ाहिर करके या शाबासी देकर उनका हौसला बढाते हैं उनको मैं एक उक्ति याद दिलाना चाहुंगा -'वैश्याओं के हाव भाव, अदाओं व कृत्यों पर या तो उनके दलाल ख़ुश होते हैं अथवा वो लोग जिन्हे उन से शारिरिक सुख प्राप्त करना होता है अथवा मनोरंजन ही जिनका मात्र ध्येय होता है । नैतिकता उसका कोई समर्थन नही करती ।'
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मैं पूर्व वायु सैनिक 'कृष्ण भारद्वाज' कड़े शब्दों में इन महाशय की निंदा करता हूं और इनको बताना चाहता हूं कि हम लोग आरक्षित कोटे में देश सेवा नही करने जाते हैं और ना ही तुम्हारी तरह नेताओं की पीक चाट कर मुँह लाल करने वालों में से हैं । भारत माता के लिये बे-हिचक जान की बाज़ी लगाने वाले हैं हम लोग । और एक चेतावनी देता हूं कि वो राजनिती करे, या राजनैताओं को गाली दे हमे इस बात से कोई मतलब नही है पर हिंदोस्तान, सैनिकों या पूर्व सैनिकों के बारे में अगर अनाश शनाप बातें या बयान बाज़ी की तो ये उसके भविष्य के लिये ठीक नही होगा । वक़ीलों को बहस करने में महारथ होती है, ठुकाई करने में नही, लेक़िन हम सैनिक 'बहस' भी कर सकते हैं और 'ठुकाई' करने में तो महारथ है ही और जब हम 'ठुकाई' करने पर आ गये तो ये तुम्हारे छात्र समर्थक और नेता समर्थक कहीं ढूंढने से भी नज़र नही आयेंगे । अपने क़द और वज़्न के अनुसार ही बातें करें वरना आपके लिये ठीक नही होगा । जय हिंद जय भारत ।
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-कृष्ण भारद्वाज पूर्व वायुसैनिक
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